चित्रकूट: जंगलों में रहने वाले कोल आदिवासी समय के साथ आगे बढ़े हैं, अपनी ज़िंदगी में नयापन लाए हैं, लेकिन अपनी परंपराओं को नहीं भूले हैं. यह वही कोल आदिवासी हैं जिनका इतिहास बहुत पुराना है. रामायण में, शबरी जो भगवान राम के लिए बेर लायी थीं, वो इन्हीं के वंश की थीं. आज भले ही दुनिया बदल गयी है, पर कोल आदिवासी आज भी अपने रीति-रिवाज, गीत-संगीत और अपनी संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं.
परंपराओं और आधुनिकता के बीच संतुलन
पहले घने जंगलों में रहने वाले और जंगली फल और जानवरों पर निर्भर रहने वाले कोल आदिवासी आज मेहनत और लगन से खेती-बाड़ी, मजदूरी और दूसरे काम करके अपनी आजीविका चलाते हैं. खेतों से लेकर मकान बनाने तक, कोल आदिवासी हर जगह अपनी मेहनत से पहचान बना रहे हैं. भले ही उनके जीवन में कितने भी बदलाव आ गए हों, उनकी संस्कृति आज भी उतनी ही मजबूत है. बसंत ऋतु उनके लिए सिर्फ मौसम नहीं बदलती बल्कि खुशियों और उमंग का संदेश लेकर आती है. इस मौसम में मनाया जाने वाला उनका खास त्यौहार ‘फाग’ पूरे एक महीने तक चलता है.
वाद्ययंत्रों की गूंज से पूरा माहौल संगीतमय हो उठता है
गांवों में फागुन के महीने में जब होली का त्यौहार आता है तो लोग बहुत खुश होते हैं. वे सब मिलकर कोल्हाई और राई गीत गाते हैं. ढोलक, मंजीरा और दूसरे वाद्य यंत्रों की आवाज से पूरा गांव संगीतमय हो जाता है. जैसे ही संगीत शुरू होता है, सभी लोग नाचने लगते हैं. मारकुंडी गांव के रामबहोरी, जो कई सालों से यह परंपरा निभा रहे हैं, कहते हैं कि होली सिर्फ त्योहार नहीं है बल्कि हमारी संस्कृति की पहचान है. यह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो हमें एक-दूसरे से जोड़ता है.
अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी बिखेरी छटा
कोल आदिवासी समाज के गीत और नृत्य अब सिर्फ अपने इलाके में ही मशहूर नहीं हैं, बल्कि विदेशों में भी लोग इन्हें पसंद कर रहे हैं. जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आगरा आए थे, तो मारकुंडी के कलाकारों ने अपने गीत और नृत्य से उनका स्वागत किया था. रामबहोरी ने बताया कि ट्रंप का स्वागत करके और उन्हें अपनी संस्कृति दिखाकर उन्हें बहुत गर्व हुआ. उन्होंने कहा कि हमें बहुत खुशी है कि हमारी पारंपरिक कोल्हाई और राई को इतना सम्मान मिला.
सांस्कृतिक विरासत को बचाने की जरूरत
यह समुदाय अब ज़्यादा से ज़्यादा लोगों से जुड़ रहा है, लेकिन इसके साथ ही इनकी संस्कृति के लिए भी कुछ नई चुनौतियां सामने आ रही हैं. नई पीढ़ी आधुनिक ज़िंदगी जीना चाहती है, जिससे इनके पुराने गीतों और नृत्यों को बचाकर रखना और भी ज़रूरी हो जाता है.
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