चित्रकूट की विरासत खतरे में! क्या सरकार बचा पाएगी लकड़ी के खिलौनों की परंपरा?

चित्रकूट: धार्मिक नगरी चित्रकूट कभी अपनी समृद्ध काष्ठकला और लकड़ी के खिलौनों के लिए जानी जाती थी. यहां के कारीगरों द्वारा बनाए गए हस्तनिर्मित उत्पादों की मांग भारत ही नहीं बल्कि विदेशों तक थी. लगभग 150 परिवार इस उद्योग से जुड़े थे, जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिलता था.

अनुभवी कारीगर बलराम सिंह बताते हैं कि पहले वे 50 से अधिक प्रकार के खिलौने और अन्य लकड़ी के उत्पाद बनाते थे, लेकिन अब गिने-चुने सामान ही तैयार कर पाते हैं. पहले उनके खिलौने दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में हाथों-हाथ बिक जाते थे, लेकिन अब चीनी उत्पादों (चाइनीज टॉयज) की भरमार ने उनकी कला को पीछे धकेल दिया है.

सरकारी उपेक्षा और संसाधनों की कमी ने तोड़ी कमर

कारीगरों का कहना है कि पहले लकड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाती थी, लेकिन अब वन विभाग से इसे प्राप्त करना बेहद मुश्किल हो गया है. साथ ही, सरकार से कोई आर्थिक या तकनीकी सहायता न मिलने के कारण यह उद्योग धीरे-धीरे खत्म हो रहा है.

‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ योजना में शामिल

उत्तर प्रदेश सरकार ने इस उद्योग को ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ (ODOP) योजना के तहत शामिल किया है. इसके तहत कारीगरों को वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और मार्केटिंग की सुविधा देने का वादा किया गया था.

लेकिन स्थानीय कारीगरों का कहना है कि अभी तक इस योजना का कोई विशेष लाभ नहीं मिला. वे उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार इस योजना को और प्रभावी तरीके से लागू करे ताकि चित्रकूट की यह कला दोबारा उभर सके.

हस्तशिल्प कारीगरों की सरकार से अपील

लकड़ी के खिलौने बनाने वाले शिल्पकारों ने सरकार से गुहार लगाई है कि उन्हें –

* आधुनिक मशीनें और प्रशिक्षण दिया जाए

* कच्चे माल की आसान उपलब्धता सुनिश्चित की जाए

* बाजार में उचित दाम मिले ताकि उनकी मेहनत का सही मूल्य मिल सके

कारीगरों का कहना है कि यदि सरकार सही कदम उठाती है, तो चित्रकूट की यह प्राचीन कला फिर से अपनी बुलंदियों पर पहुंच सकती है और सैकड़ों लोगों को रोजगार मिल सकता है.

अब यह देखना होगा कि सरकार और प्रशासन समय रहते इस ऐतिहासिक कला को बचाने के लिए ठोस कदम उठाते हैं या फिर यह कला इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगी.

अधिक जानकारी के लिए विज़िट करें: Bundelkhand24x7



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ