अमर शहीद भगत सिंह का बुंदेलखंड के झांसी से विशेष नाता रहा है. काकोरी काण्ड के बाद के समय में जब चंद्रशेखर आज़ाद झांसी के पास के जंगलों में अज्ञातवास में रह रहे थे, उस समय भगत सिंह कई बार उनसे मिलने के लिए आते रहे थे. चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह और उनके साथियों को बुंदेलखंड में गोली चलाना सिखाया था.दिल्ली के असेंबली में बम फेंकने की पूरी योजना और तैयारी भी झांसी के जंगलों में ही की गई थी.भगत सिंह ने असेंबली में फेंके जाने वाले बम को झांसी में ही बनाया और झांसी के पास ही उसका टेस्ट भी किया था.
झांसी के जंगल में फोड़ा था पहला बम
झांसी के गैजेट में यह लिखा गया है कि वर्ष 1928 में झांसी के पास ही बबीना के जंगलों में भगत सिंह ने बम का पहला सफल परीक्षण किया था. वह यहां के जाने माने क्रांतिकारी मास्टर रुद्र नारायण के घर भी कई बार आते रहे.मास्टर रुद्र नारायण के पौत्र मुकेश नारायण बताते हैं कि भगत सिंह कई बार उनके पुश्तैनी मकान पर आते रहते थे.जब भगत सिंह को यहां से छुप कर जाना था तो मास्टर रुद्र नारायण ने ही अपनी कार मुहैया कराई थी.वह कार काफी सालों तक मास्टर रुद्र नारायण के घर में ही रखी रही इतिहासकार हरगोविंद कुशवाहा बताते हैं कि भगत सिंह कई बार झांसी आए लेकिन उसका इतिहास में वर्णन नहीं है.उन्होंने कई योजनाएं झांसी में ही बनाई.
सिर्फ इतिहासकार ही नहीं विचारक भी थे भगत सिंह
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है.उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्वान सिंह भारत की आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे. ये दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस्य थे. भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था. इसलिए ये बचपन से ही अंग्रेजों से नफरत करने लगे थे. भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे.13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला. भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशील विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे. उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विस्तृत अध्ययन किया था
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