तपोभूमि के कण-कण में व्यापे वनवासी राम, साढ़े 11 वर्ष से अधिक तक रहे श्रीराम
विंध्य श्रृंखलाओं से घिरे अलौकिक प्राकृतिक सौन्दर्य को सहेजे धर्मनगरी चित्रकूट के कण-कण में वनवासी भगवान राम व्याप्त है। ऋषि-मुनियों की त्रेताकाल से चित्रकूट की धरती रही है। भगवान राम ने अपने वनवास काल का सर्वाधिक समय 11 वर्ष 6 माह इसी धरती में बिताए है। माता जानकी व भ्राता लक्ष्मण के साथ भगवान राम धर्मनगरी में कई जगह रहे है। तीर्थ क्षेत्र के कई स्थल भगवान राम से जुड़े है। पर्ण कुटी, रामघाट, कामदनाथ, रामशैया, स्फटिकशिला, सती अनुसुइया, सुतीक्ष्ण आश्रम, सरभंग आश्रम व गुप्त गोदावरी में भगवान राम वनवास काल के दौरान अपना समय बिताया है। भगवान राम ने जिन स्थलों में अपने पल बिताए, वहां पर दूर-दूर से श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है।
लखन दीख पय उतरि करारा, चहुंदिशि फिरौ धनुष जिमि नारा।
रघुबर कह्यो लखन भल घाटू, करहु कतहु अब ठाहर ठाटू।
भरत मंदिर के महंत दिव्य जीवनदास महाराज कहते हैं कि भगवान राम के वनवासकाल का गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी रामचरित मानस में सुंदर वर्णन किया है। भगवान राम चित्रकूट में कई जगह अपने वनवास काल को बिताया है। सबसे पहले भगवान राम चित्रकूट में रामघाट पर पहुंचे थे। क्योंकि यहां पर मंदाकिनी नदी धनुषाकार है। भगवान राम ने लक्ष्मण से यहां आने के बाद ठहरने का इंतजाम करने को कहा था। काफी समय प्रभु श्रीराम ठहरे।
रामघाट में गोस्वामी तुलसीलदास को प्रभू ने दिए दर्शन
यहीं पर भगवान राम, माता सीता और भगवान लक्षण ने गोस्वामी तुलसीदास को दर्शन दिया था। यहां पर हर महीने अमावस्या मेला में आने वाले लाखों श्रद्धालु मंदाकिनी स्नान करते है। रोजाना शाम को मंदाकिनी की भव्य आरती भी होती है। धर्म और आस्था के प्रतीक इस घाट का नाम भगवान राम के ही नाम से पड़ा। भगवान राम इसी घाट पर स्नान कर कामदनाथ भगवान की पूजा किया करते थे। रामघाट का रामायण काल में बहुत ही महत्व है। जब भगवान राम के पिता की अस्थियों का विसर्जन रामघाट में ही किया था।
भगवान राम के आशीर्वाद से पर्वत पूरी कर रहे मनोकामना
भगवान राम के आशीर्वाद से ही यहां के पर्वत लोगों की मनोकामनाओं को पूरी कर रहे है। इसका उल्लेख रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई कामद भे गिरि राम प्रसादा, अवलोकत अपहरत प्रसादा में है। श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए कामदगिरि परिक्रमा लगाते है। भगवान कामदनाथ के चार मुखारबिंद भी है। अन्य कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने यहीं पर जीवन की संरचना के समय 108 अग्निकुंडों के साथ यज्ञ किया था। कामदगिरि का शाब्दिक अर्थ 'इच्छाओं को पूरा करने वाली पहाड़ी' और इसलिए बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं। यह धनुषाकार पर्वत है। इनको देखने मात्र से आंतरिक कष्ट मिट जाते है।
चित्रकूट की सुंदरता की भगवान ने की थी सराहना
मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित स्फटिकशिला में यह एक शिलाखंड है। कहते है कि यहां पर भगवान राम और माता सीता ने चित्रकूट की सुंदरता की सराहना की थी। माता सीता ने यहां पर श्रृंगार किया था। यहां शिलाखंड पर भगवान राम के पदचिह्न भी देखने को मिलते हैं। इसके अलावा पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वही जगह है, जहां भगवान इंद्र के पुत्र जयंत ने कौआ के रूप में आकर माता सीता को चोंच मारा था। वनवासकाल के दौरान स्फटिक शिला में भगवान राम व माता सीता विश्राम किया करते थे।
सती अनुसुइया व अत्रि मुनि से मिले थे प्रभू श्रीराम
महाकाव्य रामायण के अनुसार मंदाकिनी किनारे घनघोर जंगल में सती अनसूइया आश्रम वह जगह है, जहां अत्रिमुनि ऋषि और उनकी पत्नी माता अनसूइया रहते थे। सती अनसूइया पवित्र स्त्री थीं, जिन्होंने हमेशा तपस्या और भक्ति का अभ्यास किया था। उन्हें चमत्कारी शक्तियों के रूप में वर्णित किया गया है। भगवान राम व माता सीता भी वनवासकाल के दौरान यहां पहुंचे थे। देवी अनुसुइया ने इसी स्थान पर माता सीता को सतित्त्व का महत्व बताया था।
लक्ष्मण ने पर्ण कुटी का किया था निर्माण
चित्रकूट में पर्ण कुटी का खास महत्व है। निर्वासन काल के दौरान लक्ष्मण ने भगवान राम और माता सीता के लिए एक झोपडी के रूप में इसका निर्माण किया था। इसमें उन्होंने जंगल से बांस और अन्य जंगली झाडियां लाकर उपयोग किया। इस पर्ण कुटी में भगवान राम व माता सीता ने काफी समय बिताया।
राम शैया के विशाल शिला पर करते थे विश्राम
धर्मनगरी से सटे बिहारा गांव में रामशैया देखने लायक स्थान है। यहां पर श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है। बताते हैं कि वनवास के दौरान भगवान राम और सीता एक विशाल शिला पर विश्राम करते थे। यहां पर धनुष और विस्तर के निशान भी देखने को मिलते है। इसी से कुछ ही दूरी पर परिक्रमा मार्ग से सटी लक्ष्मण पहाड़ी है। कहते हैं कि सुरक्षा में तैनात लक्ष्मण इसी पहाड़ी में रहते रहे है। पहाड़ी में लक्ष्मण के चरण चिन्ह, प्राचीन खंभे है।
सुतीक्ष्ण मुनि के दर्शन करने पहुंचे थे राम
धर्मनगरी क्षेत्र में सुतीक्ष्ण आश्रम भी प्रमुख स्थानों में है। महर्षि सुतीक्ष्ण के दर्शन की इक्षा मन में लेकर भगवान राम इस स्थान पर आए थे। इस स्थान पर पहाड़ों से नीचे कुंड की ओर जाने वाली एक धारा प्रवाहित होती हैं, जिसे धारकुंडी के नाम से जाना जाता हैं।
जानकीकुंड के पास मंदाकिनी स्नान करती थी माता जानकी
मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित जानकी कुंड सबसे सुंदर और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण घाटों में से एक है। यह वह जगह है, जहां माता सीता अपने वनवास के दौरान स्नान करती थी। यहां पर मिलने वाले पैरों के चिन्हों को माता जानकी के पैरो के निशान माने जाते हैं। वनवास के दौरान यह स्थान माता जानकी का सबसे पसंदीदा माना जाता है।
गुप्त गोदावरी में माता सीता के साथ ठहरे थे राम
धर्मनगरी में गुप्त गोदावरी बहुत मनमोहक स्थानों में से एक है। यहां वनवासकाल के दौरान भगवान राम, माता सीता व भ्राता लक्ष्मण के साथ ठहरे थे। यहां पर दो आकर्षित गुफा है। माना जाता हैं कि गुफा के अंदर की चट्टानों से गोदावरी नदी की जलधारा निकलती है। जलधारा हर समय बहती है। चट्टान में बहती हुई यह जलधारा विलुप्त हो जाती हैं। विशाल चट्टान को छत से बाहर निकलते हुए देखा जाता है। कहते हैं कि यह विशाल दानव मयंक का अवशेष है।
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