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Hamirpur News: पुरानी परंपरा में लौटेगा बुंदेलखंड, प्राकृतिक खेती के लिए जिले को मिले 180 लाख

Hamirpur News: पुरानी परंपरा में लौटेगा बुंदेलखंड, प्राकृतिक खेती के लिए जिले को मिले 180 लाख

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हमीरपुर। बुंदेलखंड (Bundelkhand) को पुरानी परंपरा में लौट आने के लिए शासन की ओर से भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। किसानों को प्राकृतिक विधि से खेती करने में एक-दो साल नुकसान उठाना पड़ता है। बाद में उसके परिणाम निकलने से मिलने वाले लाभों को भी किसान समझने लगा है। यही कारण है कि शासन की चलाई जा रही प्राकृतिक खेती के मुहिम में जिले के तीन हजार किसान प्राकृतिक विधि से खेती कर रहे है। याेजना के तहत जिले को 180 लाख की धनराशि शासन ने जारी कर दी है। जो डीबीटी के माध्यम से किसानों के बैंक खातों में भेजी जाएगी।

शासन की ओर से किसानों को आर्गेनिक खेती से जोड़ने के लिए हर क्षेत्र में इस पद्दति को अलग-अलग नाम दिया गया है। बुंदेलखंड में इस पद्धति को प्राकृतिक खेती का नाम दिया गया है। जिले में प्राकृतिक खेती कराने की योजना तीन साल के लिए शासन स्तर से बनाई गई है। पिछले साल जिले के प्रत्येक विकासखंड के 10 गांवों में 500-500 हेक्टेयर के कलस्टर बनाकर किसानाें को जोड़ा गया। पूरे जनपद में कुल तीन हजार किसान प्राकृतिक विधि से खेती कर कर रहे हैं। इसके लिये 1.80 करोड़ का बजट आवंटित कर दिया गया है।

जिले के सभी सातों ब्लाकों में 70 कलस्टर बनाए गए हैं। प्रत्येक गांव से 50 हेक्टेयर व ब्लाॅक से 500 हेक्टेयर जमीन ली गई है। इस प्रकार जिले में कुल 3500 हेक्टेयर भूमि में प्राकृतिक खेती कराने का फैसला किया गया है। चयनित किसान को योजना के तहत दूसरे वर्ष टूल किट ड्रम, मग्गा व बाल्टी खरीदने के लिए 9800 रुपये दिए जाएंगे। तीसरे व चौथे वर्ष हरी खाद व मेड़ सुधार के लिए दो-दो हजार मिलेंगे। इसके अतिरिक्त 1200 रुपये फार्म स्कूल किट के लिए डीबीटी के माध्यम से लाभार्थी किसान के खातों में राशि भेजी जाएगी।

कुरारा के मिश्रीपुर गांव निवासी किसान गोपीचंद्र ने बताया कि वह दो सालों से छह बीघे में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। इसके पहले जैविक खेती करते रहे। जमीन को पोषक तत्वों के रूप में गोबर की खाद, वेस्ट डी कंपोजर, जीवामृत, घनामृत व हरी खाद की जरूरत होती है। शु्द्ध अन्न स्वस्थ शरीर के लिए बहुत आवश्यक है। जो प्राकृतिक खेती से ही संभव है। बरसात में सांवा काकुन की उपज ली और अब गेहूं, व कुछ हिस्से में अरहर बो रखी है।

ण्गोहांड ब्लॉक के जराखर गांव निवासी युवा किसान लवकुश कहते हैं कि वह आठ बीघे में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। सूक्ष्म जीवों को अधिक ताकतवर बनाने के लिए ड्रम में गोबर के घोल में गुड़ व बेसन मिलाकर जीवामृत तैयार करते हैं। जिसे खेती में छिड़काव करते हैं। पिछले साल उपज में करीब 30 से 40 फीसदी का अंतर आया है। चार बीघे में कठिया गेहूं व चनी एवं चार बीघे में करन नरेंद्र प्रजाति का गेहूं चनी के साथ बोया है। सिंचाई चल रही है।

प्राकृतिक खेती की देखरेख के लिए रिसोर्स पर्सन रखा गया है। उसे तीन हजार रुपये कलस्टर के अनुरूप दिया जाता है। शासन ने प्राकृतिक खेती शुरु करने के लिए बजट आवंटित किया है। प्राकृतिक खेती में शुरूआत के एक दो साल उपज कम होती है। लेकिन, अन्न शुद्ध रुप से आर्गेनिक रहता है। धीरे-धीरे उपज बढ़ने लगेगी। किसान रूचि ले रहा है।

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