ज्योतिरादित्य सिंधिया पर प्रियंका गांधी की टिप्पणी का क्या होगा असर? जानें विश्लेषकों की राय
मध्य प्रदेश में शुक्रवार को मतदान हुआ। इस बार मतदाताओं ने रिकॉर्ड मतदान किया। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में भी एक बार फिर 75 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ। इन राज्यों में प्रचार के दौरान कई मुद्दे उठाए गए। प्रचार के आखिरी दौर में गांधी परिवार की ओर से पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया पर व्यक्तिगत टिप्पणी की गई। इसके कई मायने निकाले गए।
आखिर इस बयान और पलटवार के क्या मायने हैं? इसे लेकर खबरों के खिलाड़ी में चर्चा हुई। वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, प्रेम कुमार, हर्षवर्धन त्रिपाठी, समीर चौगांवकर, अवधेश कुमार और गीता भट्ट इस चर्चा में मौजूद रहे।
प्रियंका के बयानों का कितना असर होगा?
विनोद अग्निहोत्री: प्रियंका गांधी जानती हैं कि इस तरह के बयानों का लोगों पर क्या असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि छूरा जो घोंपा गया है, वह आप पर घोंपा गया है। इसका असर यह हुआ कि नरोत्तम मिश्रा को यह बयान देना पड़ा कि अगर यहां कांग्रेस जीतती है तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे। इस बयान के जरिए प्रियंका ने यह साफ कर दिया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की अब कांग्रेस में वापसी नहीं होने वाली है। एक और बात जब अपना कोई चोट देता है तो उसका दर्द ज्यादा होता है। इस मामले में यही है। कहीं न कहीं यह दर्द फूटना था। इसके बाद भी मैं मानता हूं कि प्रियंका गांधी को कद वाला बयान नहीं देना चाहिए था।
हर्षवर्धन त्रिपाठी: चुनाव में अगर किसी पर निजी और घटिया टिप्पणी की गई है, तो उसका फायदा उसे ही हुआ है जिस पर टिप्पणी की गई है। प्रियंका ने जो टिप्पणी की वह बहुत अनुचित थी। उनकी टिप्पणी को वहां की जनता बिलकुल पसंद नहीं करेगी। जहां तक दतिया की बात है तो नरोत्तम मिश्रा पिछली बार भी बहुत कम अंतर से जीते थे। ऐसे में अगर चुनाव हारते हैं तो वो उनका अपना कारण होगा। इसमें प्रियंका की भूमिका मैं नहीं मानता हूं।
प्रेम कुमार: ग्वालियर चंबल संभाग में जिस तरह की राजनीति ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर है, उसमें लोगों के बीच इस भ्रम को तोड़ना जरूरी था कि आगे कहीं सिंधिया फिर से तो गांधी परिवार के साथ नहीं आ जाएंगे। दूसरा जो व्यक्तिगत टिप्पणी की, वह नैतिक रूप से सही नहीं है, हालांकि यह कोई आपराधिक बयान भी नहीं है। बाद में उन्होंने इसकी सफाई भी दी। हालांकि, इसका कोई फर्क पड़ता नहीं है।
अवधेश कुमार: इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग सभ्य समाज में नहीं किया जाना चाहिए। कौन जीतेगा और कौन हारेगा यह राजनीति में एक पक्ष होता है। बहुत सी ऐसी कहानियां आती हैं, प्रियंका गांधी अपनी राजनीति के शुरुआत में हैं। ऐसे में इस तरह का बयान कहीं से भी सही नहीं है।
समीर चौगांवकर: मुझे नहीं लगता है कि इस बयान का कोई बहुत बड़ा असर होगा। ग्वालियर चंबल संभाग में माधवराव सिंधिया का दबदबा रहा था। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस संभाग में कभी उस तरह का प्रचार नहीं किया, जिस तरह माधवराव सिंधिया करते थे। ग्वालियर चंबल संभाग में कई सीटें हैं, जहां कांग्रेस के ऐसे नेता जीतते रहे हैं, जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के विरोधी रहे हैं। ग्वालियर-चंबल संभाग में कांग्रेस का एक बड़ा वोट बैंक है। इस संभाग की कई सीटें अगर भाजपा हारती भी है तो उसका ठीकरा सिर्फ सिंधिया पर नहीं फूटेगा।
गीता भट्ट: राजनीति में कई बार आप कोई बात आप प्रत्यक्ष रूप से न कहकर परोक्ष रूप से कहते हैं। प्रियंका वाड्रा ने जो बात कही है, उसकी बात करें तो जो लोग सामाजिक जीवन में लंबा रहना चाहते हैं, उन्हें इस तरह की बातों से परहेज करना चाहिए। यह 'बिलो द बेल्ट' बयान था। इस प्रकार की टिप्पणी से बचना चाहिए।
रामकृपाल सिंह: मैं अवध का रहने वाला हूं। उस इलाके में होली के समय कबीर बोलो होता है। उसमें ऐसी-ऐसी भाषा बोली जाती है, जिसका कोई बुरा नहीं मानता है। बनारस में होली के दिन कवि सम्मेलन होता है, उसमें एक बार कमालपति त्रिपाठी की मौजूदगी में क्या-क्या बोला गया, वो मैं यहां नहीं बोल सकता। लेकिन, उसका बुरा नहीं माना जाता था। चुनाव भी एक तरह की परीक्षा की तरह होता है। मध्य प्रदेश में 40 सीटें ऐसी हैं, जहां जीत-हार का अंतर 10 हजार से भी कम रहा था। ऐसी सीटों पर इस तरह के बयान का असर हो सकता है।
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