सत्ता की सियासत: निमाड़ में भाजपा उलझी जातियों में, बिगड़े समीकरण बने बड़ी परेशानी का कारण
पूर्वी और पश्चिमी निमाड़ दोनों से अच्छे नतीजों की उम्मीद कर रही भाजपा यहां जातिगत पेंच में बुरी तरह उलझ गई है। इन दोनों क्षेत्रों में सामान्य वर्ग के मतदाता सत्तारूढ़ दल के साथ बहुत मुखर हैं और कई जगह तो खुलकर विरोध हो रहा है।
मध्यप्रदेश में अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए पूरी ताकत झोंक चुकी भाजपा को निमाड़ में जातीय समीकरण गड़बड़ाने के कारण बड़ी परेशानी हो रही है। पूर्वी और पश्चिमी निमाड़ दोनों से अच्छे नतीजों की उम्मीद कर रही भाजपा यहां जातिगत पेंच में बुरी तरह उलझ गई है। इन दोनों क्षेत्रों में सामान्य वर्ग के मतदाता सत्तारूढ़ दल के साथ बहुत मुखर हैं और कई जगह तो खुलकर विरोध हो रहा है।
निमाड़ की 12 सीट में से सामान्य वर्ग के लिए 4 सीट हैं और भाजपा ने इस बार इन चारों सीट पर ओबीसी के लोगों को टिकट दे दिया है। इसी तरह बुरहानपुर से लेकर बड़वाह तक की पूरी पट्टी में राजपूत समाज के मतदाता बड़ी संख्या में हैं। यह वर्ग भी भाजपा को अपनी उपेक्षा का आरोप लगा रहा है। यहां भाजपा हमेशा राजपूत और गुर्जर समाज के बीच तालमेल जमाकर काम करती है, लेकिन इस बार उसने एक भी राजपूत को मौका नहीं दिया है। इसका फायदा बुरहानपुर में निर्दलीय हर्षवर्धनसिंह चौहान को मिल रहा है। बड़वाह और मांधाता दोनों सीट पर भी राजपूत समाज निर्णायक स्थिति में रहता है। भाजपा ने इन दोनों सीट पर भी गुर्जर समाज के व्यक्ति को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने मांधाता से राजपूत और बड़वाह से गुर्जर समाज के व्यक्ति को टिकट देकर दोनों समाज को संतुष्ट कर दिया।
निमाड़ की चार सामान्य सीट पर कांग्रेस ने जातीय संतुलन रखा, जबकि भाजपा ने इन चारों पर ओबीसी समुदाय के नेताओं को टिकट दिया। इस कारण सामान्य वर्ग में यहां भाजपा को उतना समर्थन नहीं मिल पा रहा है, जितनी उसे अपेक्षा थी। इसका सबसे ज्यादा नुकसान उसे खरगोन सीट पर उठाना पड़ रहा है, जहां निर्णायक स्थिति रखने वाला सामान्य वर्ग खुलकर कांग्रेस की मदद कर रहा है।
इसी तरह नेपानगर से लेकर पेटलावद तक के आदिवासी बेल्ट में भील, भिलाला और बारेला जातियों के बीच भी भाजपा के साथ ही कांग्रेस में भी पेंच बहुत उलझे हुए हैं। दोनों पार्टियों ने तीनों जातियां के बीच समीकरण साधने की पूरी कोशिश की है पर बात बन नहीं पाई और जहां जिस जाति के व्यक्ति को टिकट मिला है दूसरी दोनों उससे निपटने में कोई कसर बाकी नहीं रख रही है।
कांग्रेस भी नहीं साध पाई राजपूत समीकरण
जातियों के उलझे पेंच मालवा निर्माण में कांग्रेस को भी कई जगह नुकसान पहुंचा रहे हैं। मंदसौर रतलाम और नीमच जिले की 12 में से 6 सीट पर राजपूत समाज के लोगों का अच्छा वर्चस्व है। वह हार जीत में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। कांग्रेस ने पहले इन 12 सीट में से एक सीट पर भी राजपूत समुदाय के व्यक्ति को टिकट नहीं दिया था। बाद में जावरा में हिम्मत सिंह श्रीमाल का टिकट बदलकर वीरेंद्र सिंह सोलंकी को टिकट दिया। यहां कांग्रेस से टिकट की उम्मीद लगाए बैठे करणी सेना के बड़े नेता जीवन सिंह शेरपुर बागी हो गए और अभी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं उन्होंने जावरा के साथ ही आसपास की सीट पर भी कांग्रेस को परेशानी में डाल रखा है।
पहले यह माना जा रहा था कि उज्जैन से लेकर नीमच तक के पूरे बेल्ट में करणी सेना की सक्रियता भाजपा को नुकसान पहुंचाएगी और कांग्रेस फायदे में रहेगी, लेकिन इन वक्त पर बिगड़े समीकरण के कारण कांग्रेस को वह फायदा नहीं मिल पा रहा है जिसकी अपेक्षा थी।
मेघवाल समाज से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस के बड़े नेता श्यामलाल जोगचंद को भी इस बार मल्हारगढ़ से टिकट की उम्मीद थी, पार्टी ने परशुराम सिसौदिया को मौका दे दिया तो श्यामलाल बागी होकर निर्दलीय मैदान में आ गए। मेघवाल समाज का मंदसौर नीमच जिले के कई विधानसभा क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है और यहां कांग्रेस को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
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