MP Election: कांगेस का गढ़ रही झाबुआ विधानसभा सीट, पर भाजपा ने भेदा किला, इस बार फिर दो भूरियाओं में मुकाबला
झाबुआ में अब तक हुए 15 चुनावों में से 10 बार कांग्रेस, दो बार सोशलिस्ट और तीन बार भाजपा जीती है। 2013 व 2018 में भाजपा लगातार जीती, लेकिन 2019 में हुए उपचुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया ने यहां से भाजपा के भानू भूरिया को 27 हजार से ज्यादा मतों से हराया था।
झाबुआ मालवा निमाड़ का प्रमुख आदिवासी विधानसभा क्षेत्र है। जिले की हर सीट पर प्रत्येक दल की नजर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और अन्य दलों के स्टार प्रचारक मालवा-निमाड़ पर अपनी नजर बनाए हुए हैं। 1952 में पहले चुनाव में झाबुआ से सोशलिस्ट पार्टी की जमुना बाई विजयी रही थीं। 1957 में कांग्रेस और 1962 में सोशलिस्ट पार्टी का उम्मीदवार विजय रहा था। झाबुआ में अब तक हुए 15 चुनावों में से 10 बार कांग्रेस, दो बार सोशलिस्ट और तीन बार भाजपा जीती है। 2013 व 2018 में भाजपा लगातार जीती, लेकिन 2019 में हुए उपचुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया ने यहां से भाजपा के भानू भूरिया को 27 हजार से ज्यादा मतों से हराया था।
1967 में झाबुआ विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार बापूसिंह विजयी रहे। 1972 में कांग्रेस की गंगाबाई विजयी रहीं। गंगाबाई का मुकाबला जनसंघ के प्रेमसिंह से था। 1977 से 1993 तक कांग्रेस के बापूसिंह डामोर का इस सीट पर एकाधिकार रहा, जिसे कोई दल तोड़ नहीं पाया। बापूसिंह डामोर दो दशक से अधिक यहां के विधायक रहे। 1977 में भी उनका एकाधिकार कायम रहा था।
2003 में भाजपा के पवेसिंह पारगी ने कांग्रेस उम्मीदवार और पूर्व विधायक स्वरूप बाई भांवर को पराजित कर विजय प्राप्त की थी। 2008 में पुनः यह सीट कांग्रेस के जेवियर मेडा ने भाजपा के पवेसिंह पारगी को पराजित कर कांग्रेस का वर्चस्व कायम कर लिया। 2013 और 2018 दोनों चुनाव में लगातार भाजपा को विजय हासिल हुई। 2013 में शांतिलाल बिलवाल और 2018 में गुमानसिंह डामोर विजयी हुए।
डामोर के अलावा कोई दोबारा नहीं जीता
झाबुआ विधानसभा सीट के 1952 से 2018 तक के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि बापूसिंह डामोर के अलावा कोई दूसरी बार यहां से चुना नहीं जा सका। बापूसिंह ने यहां से सात चुनाव लड़े और छह में विजयी रहे थे। 1972 में वे निर्दलीय मैदान में थे और उन्हें 2508 मत प्राप्त हुए थे।
बागी हमेशा बिगाड़ते हैं गणित
झाबुआ में कुछ अवसरों पर बागी उम्मीदवार ने जय-पराजय के समीकरण ही बदल दिए थे। 2013 में कांग्रेस के जेवियर मेड़ा को भाजपा के शांतिलाल बिलवाल ने 15,858 वोटों से पराजित किया था। कांग्रेस से नाराज और बागी उम्मीदवार रही कलावती भूरिया को 18,311 मत मिले थे। यदि ये मत कांग्रेस को मिलते तो गणित कुछ और होता। इसी तरह 2018 में भाजपा के गुमानसिंह डामोर ने कांग्रेस के डॉक्टर विक्रांत भूरिया को 10,437 मतों से पराजित कर दिया था। तब कांग्रेस से नाराज होकर निर्दलीय मैदान में जेवियर मेड़ा उम्मीदवार थे। उन्हें 35,943 मत मिले थे, यदि ये मत कांग्रेस के खाते में जाते जो परिणाम दूसरा ही होता।
विक्रांत भूरिया का भानु भूरिया से मुकाबला
इस बार यानी विधानसभा चुनाव 2023 में झाबुआ में कांग्रेस से कांतिलाल भूरिया के बेटे डॉ. विक्रांत भूरिया और भाजपा से भानु भूरिया मैदान में हैं। कांग्रेस से बागी होकर जेवियर मेड़ा ने फॉर्म तो भरा था पर वापस ले लिया। वहीं, भाजपा से नाराज होकर पूर्व नपा अध्यक्ष धनसिंह बारिया और किसान मोर्चे के अध्यक्ष कलमसिंह भाबोर निर्दलीय मैदान में हैं। अब देखना होगा कि बागी किसको कितना नुकसान पहुंचा पाते हैं।
2019 का उपचुनाव
2019 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने भाजपा के भानु भूरिया को 27,804 मतों से पराजित किया था।
नोटा का प्रयोग: झाबुआ जिले में प्रायः नोटा का प्रयोग अधिक होता है। वर्ष 2013 में 5,128 और 2018 में 6,188 मतदाताओं ने नोटा का उपयोग किया था। लोकसभा चुनाव 2019 में झाबुआ विधानसभा क्षेत्र से 5727 वोटरों ने नोटा का बटन दबाया था।
अजब नाम के उम्मीदवार
1952 से झाबुआ सीट से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के नाम भी अजब रहे हैं। जैसे मोती सिन्हा, मास्टर मार्टिन, कसना, कचरा, किसान मसीह, कचरूमल, गब्बाजी, रासु, मनु, द्वितीय, लाला गुड़िया, डिमु, जावा और मदन डोला।
झाबुआ सीट की रोचक जानकारी
- झाबुआ में पुरुष मतदाता के बजाय महिला मतदाताओं की संख्या अधिक है।
- 1952 में सबसे कम 2 उम्मीदवार मैदान में 1952 में थे। सर्वाधिक प्रत्याशी वर्ष 2013 में 14 थे।
- न्यूनतम मतदान 1957 में और सर्वाधिक मतदान 2018 में हुआ था।
- लोकसभा चुनाव में झाबुआ विधानसभा क्षेत्र में 2019 में मतदान प्रतिशत 70.65 रहा था।
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