बुंदेलखंड की डेढ़ हजार साल पुरानी तकनीक आई काम, बुंदेली चूहा सुरंग खोदाई पद्धति ने बचाई मजदूरों की जान
Jhansi News:
बुंदेली चूहा सुरंग खोदाई पद्धति कारगर साबित हुई है। इस पद्धति ने उत्तराखंड के सिलक्यारा में सुरंग में फंसे 41 मजदूरों की जान बचाई है। झाँसी के जांबाजों ने विरासत में मिली इस पद्धति (रैट माइनिंग) का ऐसा जौहर दिखाया कि 21 घंटे में हाथ से ही 15 मीटर तक सुरंग खोद डाली।
Jhansi News: बुंदेली चूहा सुरंग खोदाई पद्धति कारगर साबित हुई है। इस पद्धति ने उत्तराखंड के सिलक्यारा में सुरंग में फंसे 41 मजदूरों की जान बचाई है। झाँसी के जांबाजों ने विरासत में मिली इस पद्धति (रैट माइनिंग) का ऐसा जौहर दिखाया कि 21 घंटे में हाथ से ही 15 मीटर तक सुरंग खोद डाली। जबकि सुरंग को खोदने में बड़ी-बड़ी मशीनें पूरी तरह फेल हो गई। बुंदेलखंड में सुरंग खोदाई की यह तकनीक डेढ़ हजार साल से भी ज्यादा पुरानी है।
चूहा पद्धति का गवाह है झाँसी और कालिंजर का किला
मजदूरों की जान बचाने वाली चूहा सुरंग खोदाई पद्धति मशीनरी के आने के बाद भले ही विलुप्त हो गई। झाँसी और कालिंजर का किला इस बात का गवाह है कि यह तकनीक बुंदेलखंड (Bundelkhand) से मिली है। इतिहासविद डॉ चित्रगुप्त बताते हैं कि 1500 साल से भी पहले से यहां के किलों में चूहा पद्धति से बनाई गई सुरंग मौजूद हैं।
मंदिरों में खोदी जाती थी सुरंग
इतिहास और पुरातत्वविद चित्रगुप्त बताते हैं कि भारत और खासकर बुंदेलखंड (Bundelkhand) में लोगों की धार्मिक आस्थाएं बहुत ही प्रबल होती हैं। यही कारण है कि मंदिर जैसे पवित्र स्थान पर कोई भी काम ऐसा नहीं किया जाता था, जिसमें पैर का इस्तेमाल होता हो। पूरे बुंदेलखंड में मंदिरों के अंदर सुरंग बनाई गई थीं। इनको हाथ से बनाया गया था। जिसे चूहा पद्धति कहा जाता है। बुंदेलखंड के पवा जैन मंदिर, करगुंवा जैन मंदिर, कुंडलपुर जैन मंदिर समेत कई अन्य महत्वपूर्ण मंदिर सुरंग में ही थी।
चूहा सुरंग खोदाई पद्धति का उदय है बुंदेलखंड
इतिहासकारों का कहना है कि बुंदेलखंड (Bundelkhand) में चूहा सुरंग खोदाई पद्धति इसलिए प्रचलित थी क्योंकि, यहां दोमट मिट्टी पाई जाती है। साथ ही काली मिट्टी और लाल मिट्टी भी अच्छा खासी मात्रा में है। ऐसे में हाथ से खुदाई का प्रचलन आम हो गया। आधुनिक दौर में फावड़ा, कुदाल, सब्बल जैसे औजार इस्तेमाल होने लगे हैं। लेकिन, इससे पहले कुशल चूहा सुरंग खोदाई पद्धति कारीगर अंगुलियों से ही सुरंग का निर्माण करते रहे हैं। बताते हैं कि चूहा पद्धति से सुरंग खोदाई करने वाले कारीगरों की अंगुलियां इतनी मजबूत हुआ करती थीं कि मिट्टी में अंगुली से ही छेद कर दिया जाता था।
इनका कहना है चूहा सुरंग खोदाई पद्धति बुंदेलखंड (Bundelkhand) की सदियों पुरानी विधा है। यहां किले और मंदिरों में चूहा सुरंग खोदाई पद्धति हमेशा से कारगर रही है। कई कुशल कारीगर तो ऐसे भी हुए हैं। जो अंगुलियों से ही सुरंग खोद दिया करते थे।- डॉ. चित्रगुप्त, इतिहासविद
माइनिंग में माहिर साथियों को राष्ट्रपति पुरूस्कार दिये जाने की मांग
पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन आदित्य ने महामहिम राष्ट्रपति को पत्र लिख कर रैट माइनिंग में माहिर परसादी लाधी और उनके दो साथियों को राष्ट्रपति पुरूस्कार दिये जाने हेतु पत्र लिखा। उन्होंने लिखा कि ये हर्ष का विषय है कि जिन मजदूरों के लिए पूरा देश दुआएं कर रहा था, उत्तरकाशी के सिलक्यारा सुरंग में 17 दिन से फंसे 41 मज़दूर जीवन की जंग जीत कर सुरंग से बाहर आ गये। सम्पूर्ण देश में जश्न जैसा माहौल बना और सभी ने ईश्वर को धन्यवाद दिया और इस अभियान में लगे हुए लोगों की मुक्तकंठ से प्रशंसा की।
इन मज़दूरों को बाहर निकालने के लिए देश विदेश से मशीनें मंगायी गयी उनको इस्तेमाल किया गया। मशीनें फेल हुयी, टूटी और खराब हुईं और बार-बार इन्तज़ार बढ़ता गया कि कब मजदूर सुरंग से बाहर आयेंगे। अन्ततः हाथों के ज़रिये रैट माईनिंग पद्वति से खुदाई करने वाले झाँसी के परसादी लाल और उनके दो साथियों सहित तीन मज़दूरों ने अपने तजुर्बे और दक्षता से खुदाई कर रैट माईनिंग पद्धति को अपना कर सफलता हासिल की और 41 मज़दूरों को सुरंग से बाहर निकालने में सहयोग किया।
उत्तराखण्ड पहुंचकर परसादी लाल ने कहा मुझे टनल में जाने से डर नहीं लगता और मैं 600 एमएम के पाइप में घुसकर भी रैट माइनिंग कर सकता हूं। यहां तो 800 एमएम का पाईप है। उन्होंने और उनकी टीम ने लगातार 26 घण्टे काम करके 12 से 13 मीटर सुंरग को खोद दिया और रेस्क्यू आपरेशन को सफल बना दिया।
झांसी के ऐसे जांबाज़ और रैट माईनिंग में दक्ष परसादी लाल और उनके दो साथी वास्तव में सम्मानित किये जाने योग्य और पात्र हैं। उन्होनें महामहिम राष्ट्रपति से अपील की है कि इन तीनों मज़दूरों को राष्ट्रपति पुरूस्कार दिए जाने हेतु सकारात्मक विचार कर अनुग्रहित करें।
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