नगर में स्थित है 108 कृष्ण मंदिर, वृन्दावन भई चरखारी
महोबा। जनपद मुख्यालय महोबा (Mahoba) से मात्र 21 किमी. दूरी पर स्थित प्राकृतिक झीलों, बगीचौं, मंदिरों एवं पहाड़ों की गोद में बसी रियासत की राजधानी चरखारी जिले भारतरत्न पं0 गोविन्द बल्लभ पंत ने बुंदेलखण्ड (Bundelkhand) का कश्मीर कहा था, किन्तु आजादी के बाद इसे अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल पड़ रहा है।
बंदेलखण्ड (Bundelkhand) का कश्मीर का अतीत काफी उज्ज्वल और गौरवशाली रहा है। यहां की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता उच्च स्तर पर आसीन नहीं। यहां का मंगलगढ़ दुर्ग, ड्यूढी दरवाजा, प्राचीन महल, मंदिर, सरोगर एवं रॉयल थियेटर, मौन साधक कल तरह मौनवाणी में अपने चरमोत्कर्ष की यशोगाथा, आज भी गुनगुनाते है। साहित्यक, सांस्कृतिक, धार्मिक, कलात्मक, सामाजिक और राजनैतिक दृष्टि से सदैव चरखारी रियासत अग्रणी रही है।
अपने कलेवर में अनेकों गौरवपूर्ण अनकही कहानी समेटे प्राकृतिक, सांस्कृति एवं धार्मिक सम्पदा की धनी धरा के लिए सुविख्यात है, यहां के शासन प्रारम्भ से ही कृष्णा उपासक रहे। इसी कारण यहां के शासकों ने भगवान श्रीकृष्ण के 108 भव्य मंदिरों का निर्माण कराया, जिसमें गुमान बिहारी, गोपाल बिहारी, चक्रधारी, गोवर्धन आदि मंदिर आज भी आस्था के केन्द्र बने हुये है। चरखारी को वृन्दावन की भी संज्ञा दी गयी। विशेषकर मेला सहस्त्रश्री गोवर्धन नाथ जी के अवसर पर जब सम्पूर्ण नगर कें मंदिर मेला प्रांगण में एक माह तक के लिये स्थापित होते है, और हजारों नर-नारियों, का समूह इनके दर्शनों के लिये उमड़ता है, तो सिर्फ एक ही गीत सबके होठों पर रहता है, कि कार्तिक मास धरम का महीना। मेला लगत उते भारी, जहां भीड़ भई भारी, वृन्दावन भई चरखारी, चरखारी में जहां एक ओर महाराज जगतराज और पुरनमल जैसे वीर योद्धा हुये। वहीं महाराज अरिमर्दन सिंह जैसे कला प्रेमी और मलखान सिंह, जुझार सिंह, मंगा सिंह, जैसे धार्मिक शासक भी हुये है।
इन राजाओं ने न केवल चरखारी में अपितु चित्रकूट, वृन्दावन में भी कुष्णा मंदिरों का निर्माण कराया।
महाराजा अरिमर्दन सिंह का कला प्रेम तो समूचे देश में जाना जाता है, यह न केवल संगीत व कला प्रेमी थे, बल्कि पारखी थे। इन्होंने चरखारी की जनता के मनोरंजन के लिए बात ही बात में कोलकाता की कोरन्थियन कम्पनी खरीद कर चरखारी ले लाये। अरिमर्दन सिंह ने मेला प्रांगण स्थित थियेटर हाल का निर्माण कराया। मेला प्रांगण स्थित हाल मौनवाणी में अपने अतीत की कहानी कहते हुये किसी कला प्रेमी का इंतजार आज भी कर रहा है। धार्मिक एवं प्राकृतिक धरोहर से परिपूर्ण चरखारी अपने अतीत पर आंसू बहा रही है। इसे सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य कि आजादी के बाद जहां देश में उत्तरोंत्तर विकास हुआ है। वर्तमान मेें मंगलगढ़ किला जिस पहाड़ पर स्थित है, वह पूर्व में मुलिया पहाड़ के नाम से जाना जाता था, जो माण्डव ऋषि की तपोस्थली थी। इसी स्थान पर जगतराज ने शेर व बकरी को एक घाट पर पानी पीते देख आश्चर्य चकित रह गये थे। यहीं उन्हें माण्डव ऋषि के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। माण्डव ऋषि ने उन्हें आशीर्वाद देते हुये उक्त स्थान पर किला निर्माण किये जाने को कहा और बताया कि राजन वहां अटूट सम्पदा है। इससे किले का निर्माण करों, जगतराज ने अपने पिता महाराज छत्रासल से अनुमति लेकर स्न 1734 में मंगलगढ़ दुर्ग का निर्माण कराया।
माण्डवपुरी के बाद उसे इसे चक्रपुरी कहा जाता रहा और बाद में अपभ्रंश होकर चरखारी कहलाने लगा। बुंदेलखण्ड (Bundelkhand) की 35 रियासतोें में जिनमें 11 सलामी प्राप्त तथा 24 तोपों की बिना सलामी प्राप्त रियासतें थीं, जिनमें चरखारी को 11 तोपों की सलामी प्राप्त थी। चरखारी प्राम्भ से ही बंुदेलों (Bundeli) के आधिपत्य में रही और यहां के दसों शासक बंुदेला थे। महाराज छत्रसाल के 19 रानियांे से 52 पुत्र थे, जिनमें से 40 पुत्र युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुये। जिनकी तीन प्रमुख संतानों में ह्रदेशाह, जगतराज और बाजीराव थे, जिन्होंने पृथक-पृथक क्षेत्रों में अपना राज्य स्ािापित किया। चरखारी का क्षेत्र जगतराज के जयेष्ठ पुत्र गुमान सिंह को मिला। गुमान सिंह के बाद रतन सिंह, जय सिंह, विजय बहादुर, मलखान सिंह, जुझार सिंह, गंगा सिंह, अरिमर्दन सिंह, और जयंत सिंह ने यहां शासन किया इस प्रकार जयंत सिंह यहां के अंतिम शासक हुये। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तथा रियासतों के विलय के उपरान्त बुंदेलखण्ड (Bundelkhand) की अधिकांश रियासतों को मिलाकर विन्ध्य प्रदेश का निर्माण किया गया था और चरखारी इसी के अंतर्गत आती थी। 26 जनवरी 1952 को विन्ध्य प्रदेश को समाप्त कर इसका अधिंकाश भाग म.प्र. में व मलखानपुर चरखारी को उ.प्र. में मिला लिया गया। स्वतंत्रता संग्राम सैनानी अथवा पूर्व मंत्री कामता प्रसाद सक्सेना इसे म.प्र. में मिलायें जाने के पक्ष में थे, जबकि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व संविधान सभा के सदस्य सांसद पं. मन्नूलाल द्विवेदी इसे उ.प्र. में मिलायें जाने के पक्ष में थे। यहां की जनता इसे म0प्र में मिलायें जाने के लिये अपना जनमत प्रकट कर चुकी थी। इन्हीं दिनों भारत रत्न उ.प्र. के प्रथम मुख्यमंत्री पं. गोविन्द बल्लभ पंत चरखारी पधारे, और चरखारी को उ.प्र. में मिलायें जाने हेतु प्रोत्साहित किया था। उन्ततः बुंदेलखण्ड (Bundelkhand) का कश्मीर कहे जाने वाले चरखारी को उ.प्र. में विलीन किया गया था।
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