बुन्देली एक विस्तृत भू-भाग की भाषा है। विस्तृत रूप होने के कारण इसमें क्षेत्रीय स्तरों पर सांस्कृतिक विचारों, परम्पराओं मान्यताओं, रीति-रिवाजों आदि का आदान-प्रदान होता है। Bundeli Ke Kshetriya Roop बुंदेली के क्षेत्रीय रूप यमुना के उत्तरी भू-भाग से लेकर नर्मदा के दक्षिण भू-भाग में क्षेत्रीय विविधता के परिणामस्वरूप बुन्देली भाषा की क्षेत्रीयता के विभिन्न स्वरूप हमें प्राप्त होते हैं।
कुछ निष्चित समान मूल प्रवृत्तियों के बावजूद स्थानीय विषेषताओं के कारण यह बुन्देली भाषा स्थानीय रूप ग्रहण करती है, जिन्हें हम उपबोली के रूप में परिभाषित कर सकते हैं या इन्हें हम बोली के क्षेत्रीय रूप भी कह सकते हैं।
लेकिन यह थोड़ा बहुत प्रभाव उसको शुद्ध रूप में पूर्णतः अलग नहीं करता। कमोबेश रूप में यही तथ्य बुन्देली के संदर्भ में भी लागू होते हैं। बुन्देली में सर्वगृहीत प्रवृत्तियों के सिवा स्थानीय प्रभाव इसके अलग-अलग रूपों को प्रस्तुत करते हैं। कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहाँ सीमावर्ती बोलियों के प्रभाव से बुन्देली शत-प्रतिशत मुक्त है और इसी क्षेत्र की बुन्देली शुद्ध अथवा मानक बुन्देली कही जा सकती है।
2- कर्मकारक परसर्गों में ‘खों‘ और ‘कों‘ रूपों का प्रचलन बुन्देली के मध्यवर्ती क्षेत्र की प्रमुख विशेषता है। उदाहरण के लिए- बहू बेटी को-बहुअन बिटियन खां, विधि की गति को- विध की गत कों।
3- बुन्देली के शुद्ध रूप में संज्ञा का बहुवचन रूप ‘न‘ और ‘अन‘ प्रत्यय लगाकर बनाया जाता है। जैसे- राजाओं ने-राजन ने, आँखों-आँखन, सैनिक-सैनिकन, लरकियन-लरकन, सैनिकों-सेनकन, लड़कांे-लरकन, लड़कियों-लरकियन।
4- कारक के कर्म में कारण से ‘सें‘ के रूप में ही सदैव प्रयोग किया जाता है। यह प्रकृति बुन्देली की मुख्य विशेषता है- प्रजा से-परजा सें, सभी से-सबई सें।
5- हकार लोप की प्रवृत्ति एक सामान्य विशेषता है, यही विशेषता उसे शुद्ध बुन्देली प्रमाणित करती है- कहता-केत, कात, कहा-कई, उन्होंने-उननें, बहुत ही-भौतई।
6 -शुद्ध बुन्देली में लोच और माधुर्य का अपूर्व संगम है। अनेक भाषाशास्त्री इसे ‘मधुर बोलियों का सिरमौर‘ कहते हैं। यह माधुर्य कठोर वर्ण ‘ड‘ बुन्देली में ‘र‘ एवं ‘ण‘ के ‘न‘ में परिवर्तित होने के कारण दिखायी देता है। जैसे-फोड़ लीं-फोर लईं, लड़ने-लरबे, बिगाड़- बिगार।
7 – अर्द्ध अक्षर को पूर्ण करके बोलने, लिखने की प्रवृत्ति पायी जाती है। जैसे- प्रजा – परजा, कर्जा-करजा, भ्रम-भरम।
8 – शुद्ध बुन्देली में स्थान-स्थान पर अनुस्वरित उच्चारण दिखायी देता है – सुना-सुनों/सुनीं, कोई-कोनउँ/ कोउ/ काउ, उसने-ऊने/ उननें/ बानें, भेदी ने-भेदी नें। ये सभी विशेषताएँ बुन्देली के मध्यवर्ती क्षेत्र की हैं, जो कि भाषायी दृष्टि से मानक बुन्देली अथवा शुद्ध बुन्देली का क्षेत्र कहा जाता है, किन्तु ये ही विशेषताएँ जब इसी रूप में प्राप्त नहीं होतीं और अन्य प्रभावों सहित प्रयुक्त होती हैं, तब ऐसे रूप को हम बुन्देली का मिश्रित रूप कहते हैं।
बनाफरी के प्राचीन स्वरूप में उर्दू, अरबी भाषा के शब्दों के साथ बुन्देली के मिश्रण से युक्त शब्दों का प्रयोग मिलता हैं। उदाहरण के लिए ‘नज़र‘ शब्द में बुन्देली का ‘त‘ प्रत्यय लगाकर बना शब्द ‘नजरत‘/सलामें/ परवानो, खत्म से खातमा/खतमई, आफत से आफतई/आफत में इसी प्रकार के शब्द हैं। बनाफरी भी बघेली मिश्रित बुन्देली एवं बुन्देली मिश्रित बघेली दो रूपों में मिलती है। महोबा चरखारी क्षेत्र की बनाफरी इसी प्रकार की है, जिसमें बघेली का मिश्रण है।
2- ईकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा के बहुवचन रूप में याँ प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे-मौंड़ी, मौंड़ियाँ।
3- अकारान्त पुल्लिंग संज्ञाएँ ओकारान्त उच्चरित होती हैं, जैसे बहुवचन रूप में एकारान्त हो जाती हैं। जैसे- घोरो – घोरे, गधरो – गधरे।
4- संबंधसूचक सर्वनाम बनाफरी में ‘जे‘ अथवा ‘ज्या‘ स्त्रीलिंग के लिये ‘जा‘ तिर्यक रूप में ‘जेह‘ ‘जे‘ ‘ज्या‘ होते हैं। ‘सो‘ का रूप बघेली की तरह ‘तो‘ अथवा ‘तोन‘ होता है।
5- बनाफरी में कारकों के परसर्ग बुन्देली और बघेली दोनों के प्रयुक्त होते हैं।
6- व्यंजनों में ‘न‘ के स्थान पर ‘ल‘ उच्चरित होता है – जनम-जलम, नीम-लीम। इसके विपरीत-ल- के स्थान पर ‘न‘ का प्रयोग भी प्रचलित है-लकड़ी-नकड़ी, लाने-नाने।
7- ‘व‘ के स्थान पर ‘म‘ का प्रयोग भी अनेक शब्दों में मिला है – दीवान – दीमान, जवान – जमान।
8- बनाफरी में बुन्देली के अन्य रूपों की तरह भविष्य कालवाची हौं, हो, हे, है, हैं, हाँ प्रत्ययों का प्रयोग होता है।
9- अपूर्ण भूतकाल क्रिया में ‘हतो‘ अथवा ‘रहे‘ रूपों का प्रयोग होता है।
10- बनाफरी की सामान्य भूतकालीन क्रिया के खड़ी बोली और पूर्वी हिन्दी की तरह दो रूप होते हैं। इस स्थिति में क्रिया के लिंग वचन कर्म के लिंग-वचन की तरह ही होते हैं अन्यथा क्रिया का लिंग पुरुष के अनुसार होता है। जैंसे-पुल्लिंग-मैंने मारोय किसी पुल्लिंग को मारा, स्त्रीलिंग- मैंने मारयू किसी स्त्रीलिंग को मारा, तृतीय पुरुष एक वचन में मारिस, मारुष का भी प्रयोग मिलता है।
11- पूर्ण भूतकाल में ‘हौं‘ प्रत्यय का प्रयोग होता है, जो वास्तव में बुन्देली का भविष्यकाल द्योतक है। यथा- ‘मैं मारहों‘ का अर्थ बुन्देली के अन्य रूपों ‘मैं मारूँगा‘ होता है, किन्तु बनाफरी में इसका अर्थ होता ‘मैंने मारा‘। ‘मारहों‘ के स्थान पर ‘मारो हो‘ का भी प्रयोग होता है। कुछ स्थानों में ‘हों‘ के स्थान पर ‘हताये‘- तथा ‘हतोय‘ प्रत्यय का भी प्रयोग मिलता है। इन विशेषताओं के साथ बुन्देली-बघेली का पूर्ण प्रभाव देखा जा सकता है।
उदाहरण के लिए जालौन और हमीरपुर जिले बुन्देली भाषी, बाँदा अवधी और बघेली से प्रभावित, कानपुर, कन्नौजी भाषी और फतेहपुर अवधी के रूप बैसवाड़ी का प्रभाव लिए हुए है। इसी प्रकार इन रूपों पर भी एक सीमावर्ती बोली का प्रभाव दूसरी पर है। इस प्रकार कहीं तिरहारी बुन्देली प्रधान है तो कहीं अन्य बोली प्रधान है, लेकिन सभी रूप मिश्रित ही कहे जा सकते हैं।
2- कटनी का बोलीरूप- कटनी क्षेत्र मुख्यतः बुन्देली सीमा के अधिक निकट है, इसी कारण यह बघेली प्रभावित बुन्देली का हिस्सा कहा जा सकता है।
3- जबलपुर तहसील का बोलीरूप – जबलपुर तहसील दक्षिण में सिवनी जिले से और पूर्व में नरसिंहपुर से संलग्न है। इसका पूर्वी भाग बघेली से और दक्षिणी भाग की बोली मण्डला के मिश्रित रूप से प्रभावित है, किन्तु दक्षिण और पश्चिमी भाग की बोली लगभग शुद्ध बुन्देली है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि बुन्देली के पूर्वी हिस्से जालौन से लेकर दक्षिणी हिस्से जबलपुर तक के सभी बोलीरूप बघेली प्रभावित हैं। कहीं यह प्रभाव या मिश्रण कम है तो कहीं अधिक मात्रा में है, लेकिन कहीं भी शुद्ध रूप नहीं है। बघेली और बुन्देली का मिश्रित रूप ही प्रचलन में है, जो बुन्देली के मिश्रित रूप के अन्तर्गत ही है। इसलिए सभी पूर्व हिस्सों के बोलीरूपों को बघेली मिश्रित बुन्देली रूप ही कह सकते हैं।
बैतूल जिले की बोली को मालवी के अन्तर्गत रखा है, क्योंकि इस क्षेत्र के निवासी मालवी का प्रयोग ही करते हैं। छिन्दवाड़ा जिले को, बुन्देली के दक्षिणी क्षेत्र के अंतर्गत प्रमुखता से सम्मिलित किया जाता है। इस जिले के दक्षिण में नागपुर जिला जो मराठी भाषी है, उत्तरी सीमा पर नरसिंहपुर तथा होशंगाबाद का बुन्देली क्षेत्र, पश्चिमी में मालवी का बैतूल जिला एवं पूर्व में बुन्देली भाषी सिवनी जिला है।
इसी कारण इस क्षेत्र के बुन्देली रूप की एक अजीबो-गरीब स्थिति बन गई है। सीमावर्ती क्षेत्रों को छोड़कर इसके मध्य भाग में ही बुन्देली का आधिक्य मिलता है। छिन्दवाड़ा जिले में भिन्न-भिन्न जातियों की प्रमुखता है और जन-जातियों की बोली बुन्देली होते हुए भी जातिगत विशिष्टता से सम्पृक्त है।
इस कारण बुन्देली के इस क्षेत्र में विभिन्न जातिगत रूप विद्यमान हैं। इन्हीं बुन्देली रूपों को डॉ. ग्रियर्सन ने विकृत बुन्देली रूपों की संज्ञा प्रदान की है, क्योंकि इनमें मराठी एवं बघेली के मिश्रण से अनेक नये शब्दों का निर्माण हुआ है। इस क्षेत्र में कोष्ठियों की कोष्ठी, किरारों की किरारी, कुम्हारों की कुम्हारी, ग्वालों की गाओली, रघुवंशियों की रघुवंशी जैसे बोलीरूप प्रचलित हैं।
यहाँ पर हम चौरई तहसील के कपुरधा ग्राम से प्राप्त बुन्देली का नमूना प्रस्तुत कर रहे हैं, जो बुन्देली भाषी सिवनी जिले के निकट है। यही कारण है कि यह स्थान बुन्देली के अधिक निकट है। यहाँ की बुन्देली की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं –
1- बुन्देली के भविष्यकालीन रूप – खाऊंगा-खांहूँ, करूँगा-करहूँ, जाउँगा-जाहूँ आदि यहाँ मिलते हैं। ‘हते‘ के लिए ‘हिते‘ शब्द का प्रयोग स्थानीय वैशिष्ट्य का प्रतीक है।
2- कर्मकारक विभक्ति ‘खौं‘ के स्थान पर ‘खें‘ का प्रयोग मिलता है।
3- ‘स्नान कर रही‘ के लिए ‘खैररई‘ शब्द का प्रयोग स्थान वैशिष्ट्य का प्रतीक है।
4- ‘अकारान्त‘ को ‘ओकारान्त‘ एवं ‘एकारान्त‘ का ‘ऐकारान्त‘ बुन्देली की तरह ही विद्यमान हैं।
5- बुन्देली की एक विशेषता ‘हकार‘ लोपीकरण है, परन्तु इस क्षेत्र का बोलीरूप शुद्ध बुन्देली नहीं तो बुन्देली के अधिक निकट अवश्य कहा जा सकता है।
6- लड़का के लिये टूरा, लड़की के लिये टूरी शब्द व प्रयोग।
7- बहुवचन के लिए अन प्रत्यय लगाया जाता है-दूरियों-दुरियन।
बालाघाट गजेटियर के लेखक सी.ई.लो के मतानुसार इस जिले के आदिवासियों के अतिरिक्त हिन्दू परिवारों की बोली मराठी मिश्रित हिन्दी है। इनमें से इस जिले में बसे पँवार बघेली और मराठी मिश्रित बुंदेली रूप बोलते हैं और लोधी बुन्देली और मराठी का मिश्रित रूप बोलते हैं।
इसी तरह मुरैना की श्योपुर तहसील की उत्तरी एवं पश्चिमी सीमा से राजस्थान की पूर्वी सीमा, पूर्वी सीमा से मुरैना का भदावरी भाषा क्षेत्र तथा दक्षिण में राजस्थानी भाषी क्षेत्र स्थित है। इसी कारण इन सीमावर्ती बोलियों का प्रभाव बुन्देली पर है। इसी मिश्रण या प्रभाव के कारण बुन्देली ने विभिन्न क्षेत्रीय रूप धारण किये हैं। बुन्देली के पश्चिमी क्षेत्र के विभिन्न बुंदेली.
Sourcee: Bundeli Jhalak
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