दमोह: बुंदेलखंड के दमोह की धरती पर कई राजाओं ने राज किया और अंत मे अपनी छाप छोड़ते हुए राजपाट को अलविदा कह गए. मराठाओ ने भी यहां सैकड़ों वर्षों तक राजकाज किया, कई इमारतें और जलस्रोत बनवाए, उन्हीं में से एक बारहद्वारी बावड़ी भी है. इसका कायाकल्प होने के बाद लोग दूर-दूर से इसे देखने आ रहे हैं. इसकी खास बात यह है कि लोग इसे दूर से देखो तो पास जाकर निहारने का मन करता है, लेकिन जैसे ही बावड़ी के अंदर झांकते हैं तो तुरंत दूर हट जाते हैं.
1868 में हुआ बावड़ी का जीर्णोद्धार
मराठा साम्राज्य पतन के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने अपने पैर पसार लिए. हालांकि ब्रिटिशर्स ने इस बावड़ी का जीर्णोद्धार कराया. बावड़ी के बाहर की ओर रोमन लिपि में सूचना पटल पर अंकित है सन् 1868, जिसे ही इस बावड़ी के जीर्णोद्धार का समय माना जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि बावड़ी के चारों ओर 12 दरवाजे होने के कारण इस बाबड़ी को लोग बारहद्वारी कहने लगे.
पानी मार रहा सड़ांध
मराठा शासकों ने इस बावड़ी को बहुत सुंदर बनाया था. समय की आंधी ने इसकी खूबसूरती पर दाग लगा दिया. फिर स्थानीय प्रशासन को इसकी सुध आई और इसका रंग रोगन कर दिया गया. अपनी खूबसूरती के कारण यह बावड़ी लोगों को आकर्षित तो करती है, लेकिन पानी को साफ नहीं कराने के कारण सदियों पुराना यह पानी सड़ांध मार रहा है. लोगों ने इसमें इतने पॉलीथिन और कचरा डाल दिया है कि यदि कोई बावड़ी में झुककर देखे तो दुर्गंध से बेहोश हो जाए.
पुरातत्व विभाग के अधिकारी सुंरेद्र चौरसिया ने बताया कि यह शहर की प्राचीन बावड़ियों में से एक है. जिसका निर्माण मराठों के शासन काल मे हुआ था. बारहद्वारी की वास्तु संरचना नक्काशी युक्त बारह द्वार का अंकन वास्तुशिल्प के माध्यम से देखने में प्रतीत होता है. जिस कारण इसे बारहद्वारी कहा जाता है. पहले के समय मे पीने योग्य पानी बावड़ी में हुआ करता था, जिस पानी को लोग अलग अलग बारह दरवाजों से भरा करते थे.
साभार: न्यूज़ 18
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